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समझ –स्वरूप व स्वभाव की–३

अनेक व्यक्तियों का यह मत होता है कि संसार के सभी संबंध या तो स्वार्थ के आधार पर चल रहे हैं या फिर वासना के आधार पर इन संबंधों में प्रेम नहीं है , लेकिन यह बात पूर्ण रूप से गलत है।


बल्कि अगर प्रेम समाप्त हो जाए तो संसार की पूरी व्यवस्था ही बिगड़ जाएगी, फिर कोई रास्ते पर चलते व्यक्ति की सहायता नहीं करेगा, कोई दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को अस्पताल तक नहीं पहुंचाएगा, कोई मां अपने बच्चे के लिए अपने प्राण देने के लिए प्रेरित नहीं हो सकेगी, यहां तक कि मनुष्य को छोड़िए पशु भी अपने बच्चों के लिए अपने प्राण देने में संकोच नहीं करते

जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है इंद्रियां शिथिल हो जाती है काम संबंध बनाने में वह सक्षम भी नहीं रहता लेकिन फिर भी जब वह अपने जीवन साथी से गहनतम तालों पर जुड़ाव अनुभव करता है वह प्रेम ही है, इस प्रेम को अगर स्वार्थ और काम की दृष्टि से ही देखा जाएगा तो इन संबंधों की सुंदरता दिखाई नहीं दे सकती - उस व्यक्ति के लिए तो वास्तव में सबकुछ अंधकार स्वरूप ही है.....

भगवान श्री गीता में कहते हैं कि मेरे लिए कोई कर्म अनिवार्य नहीं लेकिन फिर भी मैं आदर्श स्थापित करने के लिए कर्म करता हूं और उन्हीं भगवान का जीवन हमें प्रेम से ओतप्रोत दिखाई देता है - चाहे भगवान श्रीराम हों / चाहे भगवान शिव हों सभी ने प्रेम को प्राथमिकता दी है तो मनुष्य किस प्रकार इन विशुद्ध प्रेम संबंधों को झुठला सकता है और अगर वह ऐसा करता है तो यह मूर्खता ही होगी....

तो प्रेम को किसी आसक्ति या स्वार्थ से ना तोल कर इसे अपने स्वभाव का अभिन्न अंग बनाएं, अगर आपके स्वभाव में प्रेम आ जाता है तभी आप सभी प्राणियों से भी और ईश्वर से भी प्रेम कर सकेंगे और तभी आपके जीवन से कठोरता का अंत होकर मधुरता का प्रादुर्भाव हो सकेगा.....

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8 Comments

Sona_mehta

20-Jan-2024 03:17 PM

👌👌

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RAKHI Saroj

30-Dec-2022 10:59 PM

Nice

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Zakirhusain Abbas Chougule

14-Dec-2022 09:04 PM

Nice

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